मुख्यमंत्री ने जयंती पर पद्मश्री डॉ रामदयाल मुंडा को नमन किया
बेबाक अड्डा, रांची
महान शिक्षाविद्, कलाकार पद्मश्री डॉ रामदयाल मुंडा की जयंती पर सूबे के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने उन्हें नमन किया. मुख्यमंत्री ने कहा कि विश्व पटल पर आदिवासी संस्कृति, गौरव और दर्शन को पद्मश्री डॉ रामदयाल मुंडा ने मुखर किया था. ‘सेन गी सुसुन, काजी गी दुरंग, डूरी गी दुमंग- आदिवासियों का चलना ही नृत्य, बोलना ही गीत और शरीर ही मांदर है’ को मुंडा जी ने चरितार्थ किया था. डा. रामदयाल मुंडा न सिर्फ अंतरराष्ट्रीय स्तर के भाषाविद्, समाजशास्त्री और आदिवासी बुद्धिजीवी और साहित्यकार थे. बल्कि वे एक अप्रतिम आदिवासी कलाकार भी थे. उन्होंने मुंडारी, नागपुरी, पंचपरगनिया, हिंदी, अंग्रेजी में गीत-कविताओं के अलावा गद्य साहित्य रचा है. उनकी संगीत रचनाएं बहुत लोकप्रिय हुई हैं, और झारखंड की आदिवासी लोक कला, विशेषकर ‘पाइका नाच’ को वैश्विक पहचान दिलाई है. वे भारत के दलित-आदिवासी और दबे-कुचले समाज के स्वाभिमान थे, और विश्व आदिवासी दिवस मनाने की परंपरा शुरू करने में उनका अहम योगदान रहा है. आदिवासी अधिकारों के लिए रांची, पटना, दिल्ली से लेकर संयुक्त राष्ट्र संघ (यूएनओ) जैसे अंतरराष्ट्रीय मंचों तक उन्होंने आवाज उठायी. दुनिया के आदिवासी समुदायों को संगठित किया और देश व अपने गृहराज्य झारखंड में जमीनी सांस्कृतिक आंदोलनों को नेतृत्व प्रदान किया. वर्ष 2007 में उन्हें संगीत नाटक अकादमी का सम्मान मिला, तो 22 मार्च 2010 में राज्यसभा के सांसद बनाये गये और वर्ष 2010 में ही वे पद्मश्री से सम्मानित हुए. वे रांची विश्वविद्यालय रांची के कुलपति भी रहे. उनका निधन कैंसर से 30 सितंबर 2011 को हुआ था.
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