हिंदी हमारे अस्मिता का परिचायक, संवाहक और रक्षक है
By : डॉ मौसम कुमार ठाकुर
बेबाक अड्डा, गोड्डा
हिंदी केवल एक भाषा ही नहीं हमारी मातृभाषा है. यह केवल भावों की अभिव्यक्ति मात्र न होकर हृदय स्थित संपूर्ण राष्ट्रभावों की अभिव्यक्ति है. हिंदी हमारे अस्मिता का परिचायक, संवाहक और रक्षक है. हिंदी भाषा का महत्व भारतेंदु हरिश्चन्द्र के इस कथन से लगाया जा सकता है.
निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।
बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल।।
विविध कला शिक्षा अमित, ज्ञान अनेक प्रकार।
सब देसन से ले करहू, भाषा माहि प्रचार।।
सही अर्थों में कहा जाए तो विविधता वाले भारत अपने को हिंदी भाषा के माध्यम से एकता के सूत्र में
पिरोये हुए है. मान्यता है कि हिंदी शब्द का संबंध संस्कृत के सिंधु शब्द से माना जाता है. सिंधु का तात्पर्य सिंधु नदी से है. यही सिंधु शब्द ईरान में जाकर हिन्दू, हिंदी और फिर हिन्द हो गया, और इस तरह इस भाषा को अपना एक नाम मिल गया. हिंदी भाषा न केवल भारत में बोली जाती है. बल्कि दुनियां में सबसे अधिक बोली जाने वाले भाषाओं में यह तीसरे स्थान पर बोली जाने वाली भाषा है. मॉरीशस, फिजी, गयाना, सूरीनाम, संयुक्त राज्य अमेरिका, दक्षिण अफ्रीका, यमन,युगांडा,सिंगापुर, नेपाल, न्यूजीलैंड और जर्मनी जैसे देशों के एक बड़े वर्ग में यह प्रचलित है. किसी भी स्वतंत्र राष्ट्र की अपनी एक भाषा होती है, जो उसका गौरव होता है. राष्ट्रीय एकता और राष्ट्र के स्थायित्व के लिए इसका होनाअनिवार्य है. स्वतंत्रता प्राप्ति से पूर्व कांग्रेस ने यह निर्णय लिया था कि स्वंत्रता प्राप्ति के बाद भारत की राजभाषा हिंदी होगी. जिसे स्वतंत्र भारत की संविधान सभा द्वारा 14 सितम्बर 1949 को भारत संघ की राजभाषा के रूप में मान्यता दे दी गई.
आज विश्व के लगभग डेढ़ सौ विश्वविद्यालयों में हिन्दी पढ़ी और पढ़ाई जा रही है. विभिन्न देशों के 91 विश्वविद्यालयों में ‘हिन्दी चेयर’ है. किसी भी भाषा को राष्ट्रभाषा बनने के लिए उसमें सर्वव्यापकता, प्रचुर साहित्य रचना, बनावट की दृष्टि से सरलता और वैज्ञानिकता सब प्रकार के भावों को प्रकट करने की सामर्थ्य आदि गुण होने अनिवार्य होते हैं. यह सभी गुण हमारे मातृभाषा हिंदी मे है. हिंदी भाषा का इतिहास लगभग एक हजार वर्ष पुराना है. यह सभी गुण हमारे मातृभाषा हिंदी में है. हिंदी भाषा का इतिहास लगभग एक हजार वर्ष पुराना माना गया है.
हिंदी भाषा व साहित्य के विद्वान अपभ्रंश की अंतिमअवस्था ‘अवहट्ठ’ से हिंदी का उद्भव मानते हैं, जिसे पंडित चंद्रधर शर्मा गुलेरी ने ‘पुरानी हिंदी’ नाम दिया.
विश्व में अपनी पहचान बनाये रखने के लिए हमें सशक्त संप्रेषण की आवश्यकता होती है, और
इसके लिए हमें एक ऐसी भाषा चाहिए. जिसमें देश के अधिकांश जन भावनाओं का प्रेम एवं उदगार निहित हो हिंदी ही एक ऐसी भाषा है, जो तमाम ग्राही तत्वों के साथ संप्रेषण का सशक्त माध्यम है.
हिंदी दिवस की बहुत बहुत शुभकामना
लेखक : (डॉ मौसम कुमार ठाकुर, गोड्डा जिला में शिक्षक के पद पर कार्यरत हैं.
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