25 April 2024

bebaakadda

कहो खुल के

झारखंड सरकार के प्रयास से राज्य को रेशम के क्षेत्र में मिल रही खोई पहचान

झारखंड सरकार के प्रयास से राज्य को रेशम के क्षेत्र में मिल रही खोई पहचान
– हुनर को मिला अवसर, रेशम के धागों को पिरो कर संताल की महिलाएं बन रहीं हैं आत्मनिर्भर
– दुमका को सिल्क सिटी के रूप में पहचान देना सरकार का लक्ष्य
बेबाक अड्डा, दुमका/रांची
उपराजधानी दुमका की रूबी कुमारी, रेशम के धागों को आकार देने में माहिर और अन्य महिलाओं के लिए प्रेरणास्रोत हैं. रूबी दिव्यांग होने के बावजूद कभी निराश नहीं हुई. बल्कि अपने आत्मबल को और सशक्त किया. हर दिन जीवन की जद्दोजहद से पंजा लड़ा खुद को एक अलग पहचान दी. राज्य सरकार ने भी 27 वर्षीय रूबी के हौसले को सराहते हुए उसका चयन मयूराक्षी सिल्क  उत्पादन सह प्रशिक्षण केंद्र, दुमका में धागाकरण और बुनाई के लिए किया. देखते ही देखते रूबी ने सोहराय, कोहबर, जादुपटिया जैसी हस्तकला को रेशम के वस्त्रों में सधे हाथों से उकेरना शुरू कर दिया. ठीक ऐसे ही दुमका की अनुसूचित जनजाति की अधिकतर महिलाएं इस कला को अब रेशम के घागों में उकेर कर अपने हुनर को पहचान दे रहीं हैं. देश भर का 80 प्रतिशत रेशम उत्पादक झारखंड और 50 प्रतिशत रेशम उत्पादन करने वाले संताल परगना की महिलाओं के दिन बहुर रहे हैं. उनकी आत्मनिर्भरता परिलक्षित हो रही है. संताल परगना के दुमका ने सिल्क सिटी के रूप में अपनी पहचान स्थापित करने की दिशा में कदम बढ़ा दिया है. ऐसा हो रहा है मयूराक्षी सिल्क के जरिये. वह दिन दूर नहीं जब दुमका को सिल्क सिटी के रूप में पहचान देने में यहां की बुनकर महिलाएं सिरमौर/वाहक बनेंगी.
सरकार की दूरगामी सोच का सकारात्मक परिणाम
संताल परगना में तसर कोकुन का उत्पादन ज्यादा होने के बावजूद बिहार के भागलपुर जिला को सिल्क सिटी के नाम से जाना जाता है. जबकि दुमका से ही कच्चा माल लेकर यह ख्याति भागलपुर को मिली है. इसका मुख्य कारण यह रहा कि यहां के लोग केवल तसर कोकुन उत्पादन से जुड़े थे. जबकि, कोकुन उत्पादन के अलावा भी इस क्षेत्र में धागाकरण, वस्त्र बुनाई और डाईंग प्रिंटिंग कर और अधिक रोजगार एवं आय की प्राप्ति की जा सकती थी. इसको देखते हुए राज्य सरकार ने रणनीति तैयार की, ताकि रेशम के क्षेत्र में दुमका को अलग पहचान मिले तथा यहां की गरीब महिलाओं को नियमित आय से जोड़कर स्वावलंबी बनाया जा सके. इसके लिए महिलाओं को प्रशिक्षण के लिए चुना गया. शुरू में लगभग 400 महिलाओं को मयूराक्षी सिल्क उत्पादन के विभिन्न कार्यों का अलग-अलग प्रशिक्षण दिया गया. आज लगभग 500 महिलाओं को विभिन्न माध्यमों से धागाकरण, बुनाई, हस्तकला इत्यादि का प्रशिक्षण प्रदान किया जा रहा है. जबकि पूरे झारखंड में एक लाख 65 हजार परिवार रेशम उत्पादन से जुड़े हैं.
युवाओं को मिल रहा है प्रशिक्षण
वितीय वर्ष 2019-20 से राज्य से 60 युवाओं का चयन कर रेशम पालन, रेशम बुनाई एवं रेशम-छपाई में एक वर्षीय सर्टिफिकेट कोर्स का प्रशिक्षण दिया जाता है. वर्तमान में 60 युवाओं का चयन कर प्रशिक्षित किया जा रहा है.
हर संभव सहायता करेगी सरकार
दुमका प्रवास के दौरान मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने मयूराक्षी सिल्क उत्पाद का अवलोकन किया था. मुख्यमंत्री ने जिला प्रशासन को निर्देश दिया है कि सिल्क के उत्पादन को प्रोत्साहन देने के लिए हर संभव संसाधन सरकार द्वारा उपलब्ध कराया जाए, जिससे यहां के लोगों को अधिक रोजगार मिले.

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