20 April 2024

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कहो खुल के

कलाकार मार्कंडेय जजवाडे ने कद्दू शैली से निर्मित मूर्तिकला को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति दिलाई

कलाकार मार्कंडेय जजवाडे ने कद्दू शैली से निर्मित मूर्तिकला को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति दिलाई
 
बेबाक अड्डा, देवघर
 
ऑल इंडिया फाइन आर्ट्स एंड क्राफ्ट्स सोसायटी द्वारा दिल्ली में वर्ष 2012 में कद्दू से निर्मित मूर्ति ‘प्रतीक्षा’ को अवार्ड मिलने के बाद देवघर के कलाकार मार्कंडेय जजवाड़े ने कद्दू से अनेकों मूर्तियों घरों के लिए साजो-सज्जा का सामान का निर्माण कर देवघर को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई है.
 
मूर्ति निर्माण अब भी अहर्निश जारी है. मूलत देवघर स्थित बिलासी के रहने वाले स्वर्गीय विनायक जजवाड़े व स्वर्गीय वीणा देवी के सुपुत्र मार्कंडेय जजवाड़े ने बचपन में अपने घर की अलमीरा में भगवान गणेश का चित्र बनाकर घर में रखे अपनी मां की अलता से गणेश की मूर्ति में रंग भरने का काम किया था. उनकी कला को प्रोत्साहित करने के लिए पिता ने बाजार से कलर व व्हाइट पेपर लाकर उन्हें दिया था.
 
पिछले 40 वर्षों से कला के प्रति समर्पित मार्कंडेय जजवाडे से बेबाक अड्डा डाट कॉम के ब्लॉगर उनसे बेबाकी से बातचीत की, प्रस्तुत है अंश…
 
कद्दू से बनाए गए तानपुरा देखकर मिली प्रेरणा, मूर्ति निर्माण के क्षेत्र में बढ़ते गए आगे, जीते कई पुरस्कार
महानगरों में गैलरी लगाने के लिए अनूठा काम करने की जरूरत पड़ती है. वर्ष 2008-9 में दिल्ली से देवघर लौटने के क्रम में एक यात्री ट्रेन में तानपुरा लेकर चढ़ा था. तानपुरा कद्दू से बनाया गया था. देवघर पहुंचने पर उन्होंने कद्दू पर शोध करना शुरू कर दिया. शुरुआती दौर में फ्लावर पॉट, फ्रूट पाट, मूर्तियां एवं घरेलू सजावट के लिए मैटेरियल्स तैयार किया.  तस्वीर के साथ वे आर्ट एंड क्राफ्ट के डायरेक्टर से दिल्ली में मिलकर उन्हें फोटोग्राफ्स दिखाएं. कद्दू से निर्मित मूर्तियों को देखकर वे काफी प्रभावित हुए. ऑल इंडिया फाइन आर्ट एंड क्राफ्ट सोसायटी दिल्ली में वर्ष 2012 में कद्दू से निर्मित मूर्ति प्रतीक्षा का चयन प्रदर्शनी के लिए किया गया था.
 
इस तरह उन्हें मूर्ति निर्माण के क्षेत्र में तीन बार कैश अवार्ड से नवाजा गया. ललित कला अकादमी मंडी हाउस दिल्ली में वर्ष 2014 में शोलो शो भी आयोजित किया. आइफैकस में दो बार शो किया. वहां भी उन्हें अवार्ड से नवाजा गया. मूर्ति कला के क्षेत्र में भारत सरकार से सीनियर फेलोशिप अवार्ड वर्ष 2017-18 के लिए मिला. आज वे कद्दू से मूर्तियों के निर्माण के लिए हर वर्ष सीजन में किसानों से कद्दू का खेत ही खरीद लेते हैं. ताकि उन्हें मूर्ति निर्माण में विभिन्न साइज का कद्दू मिल सके.
पूर्व राष्ट्रपति डॉ प्रणब मुखर्जी व पद्म श्री पद्म भूषण कलाकार राम वी सुतार ने भी इनके कलाओं को सराहा है
कलाकार मार्कंडेय जजवाड़े द्वारा निर्मित अष्टभुजा वाला गणेश की मूर्ति आज भी रांची के ऑड्रे हाउस में स्थापित है. भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ प्रणब मुखर्जी झारखंड दौरे पर रांची आने पर उनकी मूर्ति कला की शैली की तारीफ कर चुके हैं. अंतरराष्ट्रीय स्तर के ख्याति प्राप्त कलाकार पद्म श्री पद्म भूषण राम वी सुतार ने भी उनकी कलाओं को खूब सराहा है. 
 
कमर्शियल पेंटिंग की दुकान से की शुरुआत, ₹10 प्रतिदिन के हिसाब से संताल पहाड़िया सेवा मंडल में पेंटिंग का भी किया काम
 
देवघर कॉलेज देवघर से वर्ष 1979 में इंटरमीडिएट साइंस की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद कमर्शियल पेंटिंग की दुकान से साइन बोर्ड बनाने से काम की शुरुआत की. पारिवारिक खर्चों के वहन के लिए ₹10 प्रतिदिन के हिसाब से संताल पहाड़िया सेवा मंडल देवघर में पेंटिंग का काम किया. यह सिलसिला करीब 3 से 4 वर्षों तक चला. वर्ष 1980 में कला निकेतन की स्थापना की. वर्ष 1998 में 10 से 15 बच्चों को पेंटिंग की क्लासेस का शिक्षा देने का काम घर से शुरू किया. आज पेंटिंग की क्लासेस घर के साथ-साथ कलानिकेतन में नियमित तौर पर बच्चों को दे रहे हैं. आज संस्थान से सवा सौ से ज्यादा बच्चे पेंटिंग की क्लासेस से जुड़े हुए हैं.
 
प्राथमिक शिक्षा मध्य विद्यालय झौसागढी व इंटरमीडिएट तक की शिक्षा देवघर कॉलेज देवघर से हासिल की
 
मार्कंडेय जजवाडे ने प्राथमिक शिक्षा देवघर स्थित मध्य विद्यालय झौसागढी में पूरी की. ऐतिहासिक आर मित्रा हाई स्कूल देवघर से वर्ष 1977 में मैट्रिक की पढ़ाई एवं देवघर कॉलेज देवघर से वर्ष 1979 में इंटरमीडिएट साइंस की पढ़ाई पूरी की. उनका पेंटिंग कला में अभिरुचि होने के कारण वे आगे की पढ़ाई नहीं किये. पढ़ाई में मन नहीं लगने के कारण वे कॉलेज के वर्ग कक्ष में अंतिम बेंच पर बैठा करते थे. 
 
देवघर में वर्ष 1994 में शिव बारात की नींव रखी गई थी, साजो सज्जा का दायित्व मिला था
 
करीब ढाई दशक पहले वर्ष 1994 में देवघर में शिव बारात की नींव रखी गई थी. पहला शिव बारात आर मित्रा प्लस टू हाई स्कूल प्रांगण से शाम 6:00 बजे निकाली गई थी. लाइट नहीं होने के कारण पेट्रोमैक्स के द्वारा रोशनी का इंतजाम किया गया था. शिव बारात में शामिल देवी देवताओं को रिक्शा पर बैठाया गया था. पहला शिव बारात में कलाकार मार्कंडेय जजवाडे को साजो सज्जा का दायित्व मिला था. वर्ष 1995 से देवघर के प्रथम मेयर राजनारायण खवाड़े उर्फ बबलू खवाड़े ने योगदान देना शुरू किया. यह आज भी अहर्निश जा रही है. वर्तमान में शिव बारात का थीम, पात्रों का चयन, मुख्य आकर्षण, कलाकारों के ड्रेस का चयन जी का दायित्व कलाकार मार्कंडेय जजवाड़े पर टिकी हुई है. शिव बारात का नींव रखने में राजकुमार शर्मा, विनय कुमार साह, जय कुमार साह, ताराचंद जैन, जेपीएन सिंह, गुलाब मिश्रा आदि का सराहनीय योगदान रहा है.
 
शिवरात्रि महोत्सव का काम निःशुल्क करते हैं, परिवार का मिलता है पूरा सहयोग
 
मार्कंडेय जजवाड़े शिवरात्रि महोत्सव का काम बिल्कुल निःशुल्क करते हैं. जीवन का 60 बसंत देख चुके कलाकार मार्कंडेय जजवाड़े को काम में किसी प्रकार का अड़चन सामने नहीं आता है. क्योंकि शिवरात्रि महोत्सव के काम में पत्नी उमा देवी सहित पारिवारिक सहयोग शत प्रतिशत मिलता है. हालांकि शिव महोत्सव की तैयारी पूरे बस चलती है. शिव महोत्सव के 1 माह पहले से वे अपने शैक्षणिक संस्थान कलानिकेतन को बंद कर देते हैं. 

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