26 April 2024

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कहो खुल के

प्रत्येक सामान्य नागरिक बने नए भारत निर्माण की इकाई

प्रत्येक सामान्य नागरिक बने नए भारत निर्माण की इकाई
 By- स्वामी दिव्यसुधानंद जी महाराज
 
स्वामी विवेकानंद ने जो कुछ कहा या किया, उनके चिंतन का मुख्य विषय था मानव. ‘मनुष्य निर्माण मेरे जीवन का लक्ष्य है’ वे कई बार कहा करते थे. उनके अनुसार मानव में अनंत संभावनाएं छिपी हुई है और उसके विकास की कोई सीमा नहीं है. मनुष्य का यह दायित्व है कि वह अपना विकास करें और सदैव विकास के पथ पर अग्रसर हो, चाहे कितनी ही बाधाएं क्यों ना आये. उनके अनुसार विकास केवल शारीरिक या भौतिक विकास ही नहीं है, नैतिक और आध्यात्मिक विकास भी है.
 
स्वामी विवेकानंद का विचार था कि धर्म मनुष्य को वह गुण प्रदान करता है, जिसके द्वारा वह परीक्षा और विपत्तियों को सहन कर सकता है. उनके अनुसार वह गुण आत्मविश्वास है. उनके विचार में शक्ति, साहस और आत्मविश्वास धर्म का निचोड़ है. बाकी सब तो उसका बाहरी खोल मात्र है.
 
स्वामी विवेकानंद को या व्यवहारिक ज्ञान था कि भूख, उत्पीड़ित और सामाजिक अन्याय से ग्रसित लोगों को धर्म और नैतिकता का उपदेश देना व्यर्थ का प्रयास है. वे न्याय, स्वतंत्रता और समानता के व्यापक समर्थक थे. वे विज्ञान और प्रौद्योगिकी के सदस्यों का स्वागत करते थे, क्यों क्यों उनके प्रयोग के द्वारा मनुष्य भौतिक विपदा पर विजय पाने में सक्षम हुआ है. फिर भी इस प्रगति में धर्म को भी अपना हिस्सा निभाना है. केवल धर्म ही मनुष्य को नैतिक और आध्यात्मिक झुकाव दे सकता है, जिसकी आज कमी है. धर्म के द्वारा ही पूर्ण मानव निर्माण हो सकता है, यही उनका संदेश था.
 
स्वामी विवेकानंद ने ‘शिवज्ञान से जीव सेवा’  मंत्र हमारे समक्ष पेश किए हैं. उनका आदेश है ‘दरिद्रदेवो भव, रोगीदेवो भव, पापीदेवो भव, मूर्खदेवो भव’ आदि. भारत के असंख्य पीड़ित, दुखी, अज्ञानी नर नारी ही आधुनिक देवता हैं, तथा उनकी भागवदबुद्धि से सेवा करना ही वर्तमान काल की सर्वश्रेष्ठ साधना है. यही नहीं, भारत की आध्यात्मिक परंपरा के अनुरूप यह समाज के सुधार का एक उत्तम उपाय है. 
 
स्वामी विवेकानंद शासन अथवा राजनीति के द्वारा नए राष्ट्र के निर्माण अथवा समस्याओं के समाधान में विश्वास नहीं करते थे. उन्होंने कहा है कि- एक नवीन भारत निकल पड़े हल पकड़कर, किसानों की कुटी भेद कर, मछुआ, मोची, मेहतरो की झोपड़ियों से, निकल पड़े बनियों की दुकान से, भुजवा के भाइ से, कारखानों से, हाट से, बाजार से, निकले झाड़ियों, जंगलों, पर्वतों-पहाड़ों से, यहां स्वामी विवेकानंद ने भारत के प्रत्येक समान नागरिक को नए भारत के निर्माण की गाय के रूप में इंगित किया है. सारा भारत इन छोटी-छोटी आदर्श मानव इकाइयों से छा जाए. यही है नए भारत के निर्माण की पद्धति.  प्रत्येक भारतवासी जल्दी निजी यह दायित्व समझे.

स्वामी दिव्यसुधानंद जी महाराज, प्राचार्य, रामकृष्ण मिशन विद्यापीठ देवघर

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