9 May 2025

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कहो खुल के

कृषि बिल : समस्या एवं संभावनाएं

कृषि बिल : समस्या एवं संभावनाएं
 
प्रोफेसर  (डाक्टर ) नागेश्वर शर्मा 
संयुक्त सचिव, भारतीय आर्थिक परिषद्  (बिहार -झारखंड )
 
विगत 21 दिनों से कृषि प्रधान देश के किसान कृषि बिल के विरोध में आन्दोलन कर रहे हैं. धरना, प्रदर्शन एवं उपवास अनवरत जारी है. किसान तीनों बिल की वापसी पर अड़े हुए हैं. किसानों का कहना है कि यह बिल बिल्कुल किसान विरोधी है. वही गर्वेमेंट का कहना है कि यह बिल कृषि सुधार की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, और पूर्णत:किसान हित में है. आठ दौर की बातचीत विफल रहीहै. मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुँच गई है. 
 
आइए, देखें कि यह बिल क्या है, और इसकी प्रमुख बातें क्या हैं ?
संसद के मॉनसून सत्र के दौरान 17 सितंबर 2020, मंगलवार के दिन लोकसभा में तीन नए बिल पारित किए गए. 18 सितंबर 2020 को राज्यसभा से भी तीनों बिल पारित हो गये. ये तीन बिल हैं : कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण विधेयक ) 2020, दूसरा है : कृषक सशक्तिकरण व संरक्षण विधेयक और तीसरे विधेयक कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार विधेयक, 2020 है.
 
बिल का उद्देश्य :
नये कृषि बिलों के अन्तर्गत किसान कृषि व्यापार करने वाली फर्मों, प्रोसेसर, थोक व्यापारी, निर्यातकों या बड़े खुदरा विक्रेताओं के साथ कॉन्ट्रैक्ट करके पहले से तय एक दाम पर भविष्य में अपनी उपज बेच सकते हैं. इसके अन्तर्गत किसान बिचौलिए को दरकिनार कर पूरे दाम के लिए सीधे बाजार में जा सकता है. 
 
किसानों की मजबूरी :
किसानों की मजबूरी समझना आवश्यक है. हरित क्रांति के पहले तक भारतीय किसानी मात्र जीविका का साधन था. हरित क्रांति की सफलता ने कृषि को व्यवसाय का रूप तो दिया. लेकिन लाभकारी व्यवसाय आज तक नही हो पाया है. कारण यह है कि हरित क्रांति के बाद कृषि के आगत जैसे – बीज, रसायनिक खाद, सिंचाई, एवं कीटनाशक दवाइयाँ आदि मंहगी होते चले गए, और परिणामस्वरुप कृषि लागत भी बढते चले गए. कृषि लागत में लगातार बढ़ोतरी के चलते आज तक कृषि लाभकारी व्यवसाय नही बन पाई है. खेती के लिए किसानों को बैंक से या अन्य स्रोतों से कर्ज लेने पडते हैं, और फिर बोझ के दबाव में खुदकुशी करने को बाध्य होते हैं. मंहगी आगत के आपूर्तिकर्ता सनद रहे की विदेशी कम्पनियाँ हैं. यही हमारे अन्नदाता किसानों की मजबूरियाँ हैं.
 
बिल के प्रति किसानों की आशंका :
किसान संगठनों का कहना है कि ये नये कृषि बिल किसान विरोधी हैं। और निजी निवेशकों एवं कारपोरेट घरानों के हित को साधने वाले हैं. नये बिलों में वैसे प्रावधानों का उल्लेख नही है जो किसानों के उपज की बिक्री एवं उसके कीमत की गारंटी से जुड़े हुए हैं, और अब तक किसान उसके फायदे ले रहे हैं. मसलन न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP ) के जारी रहने का उल्लेख न होना. उल्लेखनीय है कि MSP किसानों के उपज मंडी के मूल्य की गारंटी है. संचालित कृषि लागत और मूल्य लागत आयोग (सी0 ए0 सी0 पी0 ) हर साल बुआई के समय कृषि लागत को ध्यान में रखते हुए 23 फसलों के लिए MSP तय की जाती है. किसानों की आशंका है कि MSP के अभाव में उन्हें आने वाले दिनों में औने-पौने दाम पर यानी लागत से भी कम कीमत पर बेचने के लिए मजबूर होना पड़ेगा. बिल के विरोध की दूसरी बड़ी वजह APMC (Agricultural Produce Market Committee ) को खत्म करने की आशंका है. दूसरे शब्दों मे कहे तो किसानों को सुलभता से उपलब्ध मंडी की समाप्ति है. इसके अभाव में उन्हे उनकी फसल का उचित मूल्य नही मिलेगा, और निजी कंपनियों का वर्चस्व हो जायेगा और अपने लिए किसानो के हानिकी कीमत पर लाभ अर्जित करेगी. अत: ये बिल बिल्कुल किसान विरोधी है. अभी 7 हजार APMC हैं. बिहार, केरल, और मणिपुर में APMC की व्यवस्था नही है. किसानों की नाराजगी कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग को लेकर भी है. सरकारी पक्ष की माने तो निजी मंडी किसानों के साथ फसल के लिए कानट्रैक्ट करेगी, न कि उनकी जमीन का. लेकिन किसान इस परेशानी में जाना नही चाहते. सचमुच में contract तो कोई स्थायी समाधान नही हुआ. कृषि उपज के भंडारण की समस्या नये बिलों के चलते उत्पन्न होगी. अभी की व्यवस्था में यह समस्या नही है. किसान एफ0 सी0 आई0 माडल की व्यवस्था को बरकरार रखना चाहते हैं, साथ ही MSP भी ताकि उनके हित सुरक्षित रहे.
 
सरकारी तर्क : बिल के पक्ष में गर्वेमेंट के अपने तर्क हैं, और इसे पूरी तरह से किसान के हित में बताते हैं. किसान दिग्भ्रमित किए जा रहे हैं. न तो MSP हटाया जाएगा और न ही APMC ही समाप्त किया जाएगा. बहुत सोच-समझकर यह बिल तैयार किया गया है. ये बिल दीर्घकालिक कृषि सुधार और नयी आर्थिक सुधारों की दिशा में एक बड़ा कदम है. इसमें किसानों को ज्यादा विकल्प मिलेंगे और कीमत को लेकर प्रतिस्पर्धा होगी, और इसके लाभ किसानों को मिल सकता है. अर्थशास्त्र में opportunity benefits सिद्धांत है. लेकिन ये फायदे तभी होंगे, जब विकल्प उपलब्ध हो, और किसानों में मोल-भाव करने की क्षमता हो, जो कि फिलहाल हमारे किसानों मे नही है. पक्ष में एक तर्क यह भी है कि निजी कंपनी कृषि बाजार, प्रोसेसिंग और आधारभूत संरचना में बड़े पैमाने पर निवेश करेगी. जिसका फायदा कृषकों को मिलेगा. ये फायदे भी अल्पकालिक नही, दीर्घकालिक होंगे. किसान आन्दोलन पर डटे हुए हैं. मामला उच्चतम न्यायालय मे विचाराधीन है. मेरी राय में यह लड़ाई अब खेती किसानी की नही है, बल्कि न्याय और प्रतिष्ठा की हो गई है.
प्रोफेसर  (डाक्टर ) नागेश्वर शर्मा ,संयुक्त सचिव, भारतीय आर्थिक परिषद्  (बिहार -झारखंड ) राष्ट्रीय स्तर के अर्थशास्त्र म्मज्ञ विद्वान हैं . दीनों ,दलितों ,शोषित उपेक्षित और वंचित व्यक्तियों के प्रति इनकी गहरी संवेदना इनके लेखनी में परिलिकक्षित होते रहतीं हैं . इनके द्वारा लिखी गई किताब “डेवेलपमेंट , डिसप्लेसमेंट ,डेप्राइवैशन एण्ड डिसकंटेन्ट” ने बहुत ही प्रसिद्धि पायी है .
 
 

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