झारखंड का सांस्कृतिक राजधानी देवघर में द्वादश ज्योतिर्लिंग वैद्यनाथधाम मंदिर है. देवघर में द्वादश ज्योतिर्लिंग की पूजा अर्चना के साथ-साथ यहां की आध्यात्मिक, ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, धार्मिक, तांत्रिक आदि महत्ता को जानने के लिए सिर्फ भारतवर्ष के कोने-कोने से ही नहीं, बल्कि दुनिया के विभिन्न देशों के लोग यहां पहुंचते हैं. वाबजूद संयुक्त बिहार के साथ-साथ झारखंड निर्माण के दो दशक तक झारखंड की नई चित्रकला शैली बैद्यनाथ पेंटिंग लोगों से दूर थी.
वैद्यनाथधाम में सालों भर विभिन्न प्रकार के अनुष्ठान होते रहते हैं. पर्यटन अथवा भक्ति भाव से आए श्रद्धालु अपने उद्देश्य की प्राप्ति के लिए कुछ समय यहां रुकते हैं. अल्प अवधि के कारण सालों भर संपन्न हुए कार्यक्रम का अवलोकन करना संभव नहीं हो पाता है. यदि सभी कार्यक्रम या अनुष्ठान को अवलोकित किया जाये तो दीर्घअवधि तक यहां ठहरना पड़ेगा, जो संभव नहीं है. बैद्यनाथ पेंटिंग के माध्यम से अलग-अलग कालखंड में घटित घटनाओं को एक चित्र श्रृंखला के माध्यम से उन्हें संकलित कर निरूपित करने का प्रयास किया गया है.
कला प्रेमी नरेंद्र पंजियारा की सूझ-बूझ एवं अदम्य साहस कि बदौलत बैद्यनाथ पेंटिंग तेजी से विकसित होने के साथ-साथ विस्तार पा रहा है. बैद्यनाथ पेंटिंग मुख्य रूप से वैद्यनाथ मंदिर, वहां की पूजा अर्चना पद्धति, मान्यताओं, धार्मिक व तांत्रिक कर्मकांड, शास्त्रीय, लोक कथाओं पर केंद्रित है. जानकारों की माने तो बैद्यनाथ पेंटिंग को उसी तर्ज पर विकसित किया गया है, जैसा कि कोलकाता के काली घाट मंदिर में 19वीं सदी में कालीघाट चित्रकला का विकास हुआ था.
इस प्रकार के प्रयास से वैद्यनाथधाम देवघर को एक पेंटिंग मिली, साथ ही साथ यहां के बिखरे पड़े संस्कृति का आकलन भी सार्थक हुआ. बैद्यनाथ पेंटिंग भविष्य में मील का पत्थर की सार्थकता को पूर्ण करने में सक्षम सिद्ध होगा. बाबा भोलेनाथ की असीम कृपा और लेखक के विश्वास की प्रगाढ़ता को सिद्ध करती है. लेखक अपने कर्म और भक्ति को बाबा के प्रति समर्पित कर अपनी अंत: प्रेरणा से मार्गदर्शन प्राप्त कर जन जन के सुखाय निमित्त इसे कार्य रूप दिया गया है. जिसमें लेखक का कर्म, भक्ति एवं आत्मिक सुख निहित है. यह बाबा की कृपा एवं आशीर्वचन से ही सबों के समक्ष बैद्यनाथ पेंटिंग सक्षमता को प्राप्त कर सका है.











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