27 April 2024

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कहो खुल के

शहीदों की शहादत के कारण भारत आजाद हुआ

शहीदों की शहादत के कारण भारत आजाद हुआ
  75वें स्वतंत्रता दिवस पे अंबष्ठ जी के विचार 
 
लेखक : डॉ श्याम किशोर अंबष्ठ
 
सर्वप्रथम बेबाक अड्डा डॉट कॉम द्वारा उत्कृष्ट प्रकाशन हेतु हार्दिक शुभकामनाएं प्रकट करता हूं एवं आशा करता हूं ज्वलंत समस्याओं एवं जनमानस हेतु आपका पोर्टल हमेशा प्रहरी की तरह कार्य करेगा. आपके पोर्टल के सालगिरह पर पुनः बधाइयां एवं हार्दिक शुभकामनाएं प्रकट करता हूं.
आज पुन: हम 2021 के 75वें स्वतंत्रता दिवस का स्वागत करने एकत्रित हुए हैं, तो सबसे पहले हम सलाम करते हैं, उन शहीदों को जिनकी शहादत के कारण से भारत आजाद हुआ, और गणतंत्र की स्थापना हमारे देश में हुई. फिर, हम सलाम करते हैं उन विचारकों, कवियों, साहित्यकारों, राजनेताओं को जिन्होंने अपने बुद्धि – विवेक से भारतीय संविधान की रचना की और गणतंत्र की बुनियाद मजबूत पत्थरों से सजायी जो आज भी अडोल खड़ी है. एक लंबी यात्रा हमने तय की है. अनेकों बार हमारे देश ने आंधियां झेली हैं, हमारा देश तूफानों से गुजरा है, हमें कई कई – युद्ध लड़ने पड़े हैं. मगर हम हताश नहीं हुए, हमारी आत्मिक ज्योति मंद नहीं पड़ी है, मगर अभी भी हमारी मंजिलें बहुत दूर है. हमें और तेज चलना है, आगे बढ़ना है तो मुझे उपनिषद का वह सूक्त याद आता है –
 
”उत्थिष्ठत जाग्रत प्राप्य वारानिवोधत”
 
हम अपने विद्यार्थियों के बीच स्वामी विवेकानंद की इस उक्ति को सुनाना चाहेंगे – उन्होंने कहा था, बहुत पहले कहा था, उस समय कहा था, जब देश गुलाम था, क्या कहा था उन्होंने ? देश के तमाम नौजवानों से कहा था NO THYSELF अपने आप को जानो, मैं भी विद्यार्थियों के बीच यही कहना चाहता हूं कि तुम खुद को जानो. खुद को जानने का अर्थ है, अपने भीतर झांको, खुद को महसूस करो, विवेक की आंखों से दुनिया को देखो और इस देश के महान नागरिक बनों. क्योंकि, भारत मां की आशा हो तुम. भारत मां के भविष्य हो तुम. मां का आंचल फटे नहीं, कहीं मां का दूध बदनाम ना हो, इस काबिल तुम्हें बनना है. अर्थात मैं चाहता हूं कि विद्या प्रांगण का प्रत्येक छात्र विवेकानंद बने, कालिदास बने, आईस्टाइन बने, महात्मा गांधी बने, जवाहर लाल बने, सुभाष चंद्र बोस बने, खुदीराम बने, झांसी की रानी बने, राम बने, कृष्ण बने और ईशा मसीह बने, राजेंद्र प्रसाद बने, नरेंद्र मोदी बनें.
 
विद्यार्थियों के अलावा हम बुजुर्गों के ऊपर भी आज उत्तरदायित्व का बोझ कम नहीं है. आजादी की इतनी लंबी यात्रा के बावजूद देश के अंतिम व्यक्तियों के घर दीये नहीं जलते हैं, अनेकों के तन पर कपड़े नहीं हैं, अनेकों के मन में आशा के अंकुर नहीं हैं. वैश्विकरण की दौड़ से हम गुजर रहे हैं. देश का जीवन स्तर ऊपर उठा है. लोगों के अंदर आजादी की समझदारियां आयी हैं, शिक्षा का प्रसार हुआ है. मगर हमारी चाल बहुत धीमी है. इस मटरगस्त चाल से अर्थात धीमी चाल से हम मंजिल तक नहीं पहुंच सकेंगे. देश के भीतर उग्रवाद का खतरा, देश के बाहर आतंकवाद का खतरा, पड़ोसियों की तीखी निगाहें, सीमा विवाद, देश के अंदर मकड़जाल की तरह फैलता भ्रष्टाचार, यह सारी चुनौतियां हमारे सामने हैं, हम कैसे निपट सकेंगे इन चुनौतियों से ?
 
पहले कहा जाता था – यथा राजा तथा प्रजा. अब इसे उलट दीजिए – यथा प्रजा तथा राजा, प्रजा हमारी जैसी रहेगी, सरकार हमारी वैसी बनेगी. 21 वर्ष तो गुजर गये, झारखंड में हमने वैसी सरकार बनायी कि विकास के बहुत कम कदम ही उठा सके. हम दोष देते हैं सरकार का, राजनेताओं का, भीतर झांक कर देखिए तो आपको पता चलेगा कि दोष सरकार का नहीं है, दोष हमारा है. हम सबों ने ही तो कई बार सरकार बनायी है. संसद और विधान सभाओं में राजनेताओं की चाल और व्यवहार से तो शर्म को भी शर्म आती है. मगर शर्म तो हमें आनी चाहिए कि ऐसे राजनेताओं को सत्ता के शीर्ष तक पहुंचाते हैं. हमारी गणतंत्र की सीमाएं अनेक है. मगर निराश होने की जरूरत नहीं है. विश्व का विशाल गणतंत्र भारतवर्ष का है और उसकी जड़े शेषनाग की पीठ छू रही है. कश्मीर के लोगों ने जान पर खेल कर 58 फीसदी वोटिंग की, तो हमें अपनी DEMOCRACY पर गर्व है. हमें अपने तिरंगे पर गर्व है. हमें अपने हिमालय पर गर्व है, हमें इस देश की चेतना पर गर्व है, स्वामी रामकृष्ण परमहंस ने कहा था कि – “गोलमालेर मधे किछु माल आछे” बादल के इन छोटे-छोटे टुकड़ों के बीच कल कोई सूरज उगेगा, कोई उषा उतरेगी, कोई किरण फुटेगी. जयशंकर प्रसाद की एक पंक्ति याद आती है – “अरुण मधुमय देश हमारा, जहां अनजान क्षितिज से मिलता एक सहारा”. अंत में उपनिषद् के इन वाक्यों के साथ मैं अपनी लेखनी को विराम देना चाहता हूं.
 
तमषो मां ज्योतिर्गमय
असतो मां सद्गमय
मृस्यों मां अमृतम गमय
जय हिंद, जय भारत, जय झारखंड

लेखक : डॉ श्याम किशोर अंबष्ठ,यूनिवर्सिटी डिपार्टमेंट ऑफ कॉमर्स
हेड ऑफ द डिपार्टमेंट,सिदो कान्हू मुर्मू विश्वविद्यालय दुमका

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