2 May 2024

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कहो खुल के

मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम

मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम
By : डॉ मौसम कुमार ठाकुर
 
श्रीरामचंद्र कृपालु भजु मन हरण भवभय दारुणं,
नवकंज लोचन, कंजमुख कर, कंज पद कंजारुणं.
कंदर्प अगणित अमित छवि नव नील नीरज सुन्दरम,
पट पीत मानहु तडित रूचि-शुची नौमी, जनक सुतावरं.
भय प्रगट कृपाला, दीनदयाला कौसल्या हितकारी !
                   
प्रभू राम’ की व्याख्या या उनका गुणगान संत शिरोमणि कबीरदास दास के अनुसार जितनी भी की जा सके वह लेशमात्र ही है, उनकी महिमा लिखी नहीं जा सकती है – 
‘सब धरती कागज करूँ लिखनी  सब बनराय।
सात समुद्र की मसि करूँ, गुरु गुण लिखा न जाय॥’
राम शब्द का मूल और भावात्मक अर्थ है –’ रमंति इति रामः ‘ अर्थात जो रोम-रोम में रहता है, जो समूचे ब्रह्मांड में रमण करता है .
विद्वानों ने शास्त्रों के आधार पर राम के कई अर्थों​ के विश्लेषण का प्रयास किया है क्योंकि संसार में  ‘राम’ ही मात्र एक ऐसे विषय हैं, जो योगियों की आध्यात्मिक और मानसिक भूख है और जनसाधारण के लिए परमं मंगलकारी और आनंददायी —
 
‘आपदामपहर्तारं. दातारं. सर्वसंपदाम् ! लोकभिरामं श्री रामं भूयो भूयो नमाम्यहम् !! भर्जनं भवबीजानामर्जनं. सुखसंपदाम् ! तर्जनं यमदूतानां राम रामेति गर्जनम्. !! राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे. ! सहस्र नामत्तुल्यं रामनाम वरानने !!’
 
राम का एक अर्थ है – ‘रति महीधर: राम:।’, ‘रति’ का प्रथम अक्षर ‘र’ है और ‘महीधर’ का प्रथम अथर ‘म’, राम। ‘रति महीधर:’ सम्पूर्ण विश्व की सर्वश्रेष्ठ ज्योतित सत्ता है, जिनसे सभी ज्योतित सत्ताएं ज्योति प्राप्त करती हैं.
 
राम’ का एक अर्थ है – ‘रावणस्य मरणं राम:’। ‘रावण’ शब्द का प्रथम अक्षर है ‘रा’ और ‘मरणं’ का प्रथम अक्षर है ‘म’। रा+ म= राम यानी वह सत्ता, जिसकी शक्ति से रावण मर जाता है. इस प्रकार राम हमारी आस्था और अस्मिता के सर्वोत्तम प्रतीक हैं.
 
 अनेकानेक संतों ने राम को निर्गुण स्वरूप अपने आराध्य रूप में प्रतिष्ठित किया है, जहां राम नाम  अत्यंत प्रभावी एवं विलक्षण दिव्य बीज मंत्र है. 
संत कबीरदास जी के अनुसार  आत्मा और राम एक हैं – ‘आतम राम अवर नहिं दूजा’!
 
ब्रह्मवैवर्त पुराण में कहा गया है –
राम शब्दो विश्ववचनों, मश्वापीश्वर वाचकः
अर्थात् ‘रा’ शब्द परिपूर्णता का बोधक है और ‘म’ परमेश्वर वाचक है.
 चाहे निर्गुण ब्रह्म हो या  सगुन ( दाशरथि राम) सार यह है कि राम शब्द एक’ महामंत्र ‘हैं.
 ‘भगत हेतु भगवान प्रभु राम धरेउ तनु भूप
 किए चरित्र पावन परम, प्रकृत नर अनुरूप’
            
           “मंगल भवन अमंगल हारी,
          द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी”
 राम ईश्वर के अवतार ब्रह्म स्वरूप है शक्ति और सौंदर्य के पुंज हैं मानव रूप में वे धर्म और संतों की रक्षार्थ दोस्तों और आता तारों का संघार करते हैं प्रभु राम की आदर्श चरित्र समस्त मानव जाति के लिए अनुकरणीय है भाई पुत्र पति राजा आदि सभी रूपों में उन्होंने एक उच्चतम आदर्श स्थापित किए हैं .
सहनशील व धैर्यवान :
सहनशीलता व धैर्य भगवान राम का विशेष गुण है। कैकेयी की आज्ञा से वन में 14 वर्ष बिताना, समुद्र पर सेतु बनाने के लिए तपस्या करना, सीता को त्यागने के बाद राजा होते हुए भी संन्यासी की भांति जीवन बिताना उनकी सहनशीलता की पराकाष्ठा है.
सह्रदय स्वामी :
भगवान राम ने दया कर सभी को अपनी छत्रछाया में लिया.उनकी सेना में पशु, मानव व दानव सभी थे और उन्होंने सभी को आगे बढ़ने का मौका दिया। सुग्रीव को राज्य, हनुमान, जाम्बवंत व नल-नील को भी उन्होंने समय-समय पर नेतृत्व करने का अधिकार दिया.
मित्र :
केवट हो या सुग्रीव, निषादराज या विभीषण। हर जाति, हर वर्ग के मित्रों के साथ भगवान राम ने दिल से करीबी रिश्ता निभाया। दोस्तों के लिए भी उन्होंने स्वयं कई संकट झेले.
बेहतर प्रबंधक : 
भगवान राम न केवल कुशल प्रबंधक थे, बल्कि सभी को साथ लेकर चलने वाले थे। वे सभी को विकास का अवसर देते थे व उपलब्ध संसाधनों का बेहतर उपयोग करते थे। उनके इसी गुण की वजह से लंका जाने के लिए उन्होंने व उनकी सेना ने पत्थरों का सेतु बना लिया था.
आदर्श भाई : 
भगवान राम के तीन भाई लक्ष्मण, भरत व शत्रुघ्न सौतेली मां के पुत्र थे, लेकिन उन्होंने सभी भाइयों के प्रति सगे भाई से बढ़कर त्याग और समर्पण का भाव रखा और स्नेह दिया. इसमें कोई कमी नहीं होने दी.यही कारण है कि भगवान राम के वनवास के समय लक्ष्मण उनके साथ वन गए और राम की अनुपस्थिति में राजपाट मिलने के बावजूद भरत ने भगवान राम के मूल्यों और आदर्शों को ध्यान में रखकर सिंहासन पर रामजी की चरण पादुका रख जनता को न्याय दिलाया.
 
भरत के लिए आदर्श भाई, हनुमान के लिए स्वामी, प्रजा के लिए नीति-कुशल व न्यायप्रिय राजा, सुग्रीव व केवट के परम मित्र और सेना को साथ लेकर चलने वाले व्यक्तित्व के रूप में भगवान राम को पहचाना जाता है.यही वे अनुकरणीय और वंदनीय गुण हैं  जिनके कारण हम उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम राम के नाम से जानते और पूजते हैं .यह तो सर्वथा सत्य है, कि किसी के गुण व कर्म ही उसकी पहचान होती है और वे हमारे बीच जाने जाते हैं. मानव  जीवन में आने वाले सभी संबंधों को पूर्ण तथा उत्तम रूप से निभाने की शिक्षा देने वाले प्रभु श्री रामचन्द्रजी के समान दूसरा कोई चरित्र  हो  ही नहीं सकता है. आदि कवि वाल्मीकि ने उनके संबंध में कहा है कि वे गाम्भीर्य में समुद्र के समान हैं : 
 
समुद्र इव गाम्भीर्ये धैर्यण हिमवानिव!
 
हम जब राम के जीवन पर दृष्टि डालते हैं तो उसमें कहीं भी अपूर्णता दृष्टिगोचर नहीं मिलती है.जिस समय जैसा कार्य करना चाहिए राम ने उस समय वैसा ही किया है. राम रीति, नीति, प्रीति तथा भीति सभी जानते हैं.राम परिपूर्ण हैं, आदर्श हैं.राम ने नियम और त्याग का एक आदर्श स्थापित किया है.राम जाति वर्ग से परे हैं. नर हों या वानर, मानव हों या दानव सभी से उनका करीबी रिश्ता है.भगवान राम का पूरा जीवन ही आदर्श व्यक्तित्व का प्रतीक हैं.परिदृश्य अतीत का हो या वर्तमान का, जनमानस ने राम के आदर्शों को खूब समझा-परखा है.राम का पूरा जीवन आदर्शों, संघर्षों से भरा पड़ा है. राम सिर्फ एक आदर्श पुत्र ही नहीं, आदर्श पति और भाई भी थे. भारतीय समाज में मर्यादा, आदर्श, विनय, विवेक, लोकतांत्रिक मूल्यों और संयम का नाम राम है.जो व्यक्ति संयमित, मर्यादित और संस्कारित जीवन जीता है, निःस्वार्थ भाव से उसी में मर्यादा पुरुषोत्तम राम के आदर्शों की झलक परिलक्षित  हो सकती है , उनका जीवन आदर्श होता है .राम के आदर्श लक्ष्मण रेखा की उस मर्यादा के समान है जो लांघी तो अनर्थ ही अनर्थ और सीमा की मर्यादा में रहे तो खुशहाल और सुरक्षित जीवन.भगवान राम में समन्वय की अद्भुत चेष्टा और भाव है , ज्ञान भक्ति कर्म के साथ-साथ विभिन्न देवताओं की स्तुति और महत्ता है – ‘शिव द्रोही मम भगत  कहावा! सो नर सपनेहूं मोहि न पावा!!शंकर विमुख भगति चह मोरी! सो नार की मूढ़  मति थोरी!! 
     
ऐसे शबरी के मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम , रामजानकीवल्लभ, विश्वामित्र प्रिय, त्रिलोकरक्षक, पितृभक्त, धनुर्धर, दशरथनन्दन, अयोध्या नरेश, सीतापति, रघुकुलनन्दन, अनन्तगुणगम्भीर, आदिपुरूष, महायोगी, सर्वदेवाधिदेव, राजीवलोचन, दशग्रीवशिरोहर, कौसलेय का शत शत वंदनीय हैं.
                     जय श्री राम 
 
 
लेखक : (डॉ मौसम कुमार ठाकुर, गोड्डा जिला में शिक्षक के पद पर कार्यरत हैं)

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