25 April 2024

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कहो खुल के

“विजय वल्लरी” के लेखक डॉ विजय शंकर जी से एक वार्ता

अक्षरों की दुनियाँ के आज के साक्षात्कार के अंक में हम लेके आये हैं कुछ दिन पहले प्रकाशित हुई  कवितों का संग्रह “विजय वल्लरी”  के लेखक डॉ विजय शंकर जी के जबाब और हमारे  सवाल . 

ये किताब आमेजन  पे किन्डल इडिशन में उपलब्ध है . आप उसे खरीद के अपने मोबाईल या टैब  में डाउनलोड कर पढ़ सकते हैं . 

सवाल जबाब शुरू कर से पहले लेखक का एक संक्षिप्त परिचय 

डॉ विजय शंकर : प्राथमिक शिक्षा एवं माध्यमिक शिक्षा बभनगामा से, इंटरमीडिएट, स्नातक (प्रतिष्ठा), स्नाकोत्तर, बी०एड०, एल०एल०बी० एवं पी०एच०डी० पटना (बिहार) करने के बाद वर्त्तमान में  आर०एल० सर्राफ उच्च विद्यालय देवघर (झारखंड) में सहायक शिक्षक के पद पर पदस्थापित हैं.गद्य-पद्य और मिश्रित लेखन शैली के मालिक डॉ विजय शंकर का विभिन्न दैनिक समाचार पत्रों में सम-सामयिक विषयों पर आलेख, छात्रोपयोगी सुझाव, शैक्षणिक विचार प्रकाशित होते रहते हैं.ये सोशल मीडिया पर बहुत ही सक्रिय हैं, और  नियमित रूप से कवियों, लेखकों के रचनाओं, धर्म और अध्यात्म एवं समसामयिक कविताओं पे अपने विचार व्यक्त करते रहते हैं.

भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेई जी के अनन्य भक्त हैं. इन्होंने उनके नाम पर अटल लैंग्वेज लैब की स्थापना हिन्दी, संस्कृत और अंग्रेजी भाषा में पारंगतता के लिए की है.लेखन और शिक्षा के क्षेत्र में काम करने के कारण विक्रमशिला विश्वविद्यालय से विद्या सागर सम्मान, देवघर के लगभग सभी काव्यमंच पर सम्मान प्राप्त हो चुका है.

ये इनकी पहली कविताओं का संग्रह है, जो विभिन्न विषयों पे इनकी सोच को दर्शाता है.

सवाल : कविता संग्रह विजय वल्लरी क्या है.

जवाब : कविता संग्रह विजय वल्लरी व्हाट्सएप 990 से लेकर 2020 तक के हमारे जीवन के अनुभूत अनुभव जो समाज में देखा, समाज को बदलने के लिए जो विचार मेरे मन में आया, उन्हीं विचार बिंदु का एक संग्रह है. कविता के माध्यम से हमने इसे रखने का प्रयास किया है.

सवाल : कविता संग्रह विजय वल्लरी किनको समर्पित है.
जवाब : मेरे दृष्टिकोण से कविता का सृजन ही ममत्व यानी ममता से हुआ. चाहे समाज के प्रति ममत्व हो, चाहे राष्ट्र के प्रति ममत्व हो या पारिवारिक ममत्व हो. ममता का सृजन ही मां से हुआ है. इसीलिए इस कविता संग्रह ‘विजय वल्लरी’ मैंने अपनी मां पूजनीय कर्पूरी देवी को समर्पित किया है.
सवाल : कविता संग्रह में पारिवारिक सामाजिक सहयोग कितना मिला.
जवाब : मुझे याद है. जब मैंने मैट्रिक पास किया था. उस वक्त परीक्षा फल प्रकाशन के दौरान पहली बार राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के ऊपर शीर्षक ‘नमन तेरे पदरज को बापू’ लिखा था. उस वक्त हमारे गांव के आदरणीय शास्त्रीय संगीत के मर्मज्ञ गौड़ बाबू के सुपुत्र वर्तमान में कोलकाता पश्चिम बंगाल में आईजी के पद पर कार्यरत हैं, वे मेरे पहले प्रचारक थे. यह कहे की वे पहले वेलविशर थे. पहले प्रोत्साहन कर्ता थे. जब पहली बार गांव से निकलकर पटना विश्वविद्यालय के लिए प्रस्थान किया था. (पटना में 13-14 वर्षों का लंबी शैक्षणिक यात्रा संपन्न हुई है) वहां जब बीएड कॉलेज में गया, तब कल्याणी मेम को मेरी कविताओं का सृजन अच्छा लगता था. मुझे आगे बढ़ाने में उनका अपेक्षित सहयोग है. वे कहती थी कि लड़का आगे बेहतर लेखक-कवि बनेगा. हमारे साथी अनुज राजीव रंजन जो वर्तमान में बिहार प्रशासनिक सेवा में कार्यरत हैं. वे भी हिंदी के लिए हमारे कार्यों को प्रोत्साहित करते थे. वे कहते थे कि भैया आप अवश्य लिखिए. फिर विश्वविद्यालय स्तर पर जब भी कभी कविता, निबंध, भाषण का कार्यक्रम आयोजित होता था, तो उसमें मैं भाग लेता था. कुछ लोग इस कार्य को फालतू भी कहते थे. कुछ लोग इसे बहुत ही अच्छा करार देते थे. निंदा व स्तुति दोनों ही समाज का अभिन्न अपरूप है. हम समझते हैं कि मनुष्य के विकास में इसका बड़ा योगदान भी है. केवल स्तुति होते रहे तो वो भी ठीक नहीं है. फिर पता नहीं चलता है कि हम जो लिख रहे हैं, वो सही है या गलत. केवल निंदा भी होता रहे तो आदमी हतोत्साहित हो जाएगा. वो काम करना छोड़ देगा. हमें निंदा-स्तुति दोनों का ही सामना करना पड़ा. मैं मंथर गति से चलता रहा.
सवाल : कविता संग्रह विजय वल्लरी समाज को नई दिशा देने एवं उसे बदलने में कितना सहायक साबित होगा
जवाब : देखिए! कवि का अपना स्वप्नलोक होता है. रविंद्र नाथ ठाकुर की कविता पुस्तक का हिंदी अनुवाद है “तारे ने जमीं से कहा कि मैं सामर्थ्य भर प्रकाश दूंगा, अंधेरा छटेगा कि नहीं छटेगा इसकी गारंटी नहीं लूंगा” निश्चित रूप से हर कवि लेखक रचनाकार अपने सृजन के माध्यम से समाज में एक बदलाव की चिंगारी को जरूर छोड़ता है. हम समझते हैं कि मेरा भी प्रयास इसी की कड़ी है. कविता संग्रह में वर्णित कविताओं को आप पढ़ेंगे तो आपको यह विविधता पूर्ण लगेगा. यहां समाज के बहुपक्षीय स्वभाव का वर्णन किया गया है. इसमें आपको बसंत के साथ-साथ आधुनिक शिक्षा पद्धति में हरास और विकास का वर्णन मिलेगा. कार्यालय की जो व्यवस्था है, उस पर भी टिप्पणी है. मैं जन्म से झारखंडी हूं. झारखंड की जो संस्कृति है उसमें जो विविधता महुआ, पलाश, यहां की आदिवासी संस्कृति, बाबा बैद्यनाथ की नगरी कि वो सारी चीजें इसमें रखने का प्रयास किया है. तुलसीदास जी कहते हैं   ‘निज कबित्त केहि लाग न नीका। सरस होउ अथवा अति फीका॥’. हमारे अनुसार लोग अपनी दही को कम ही खट्टा कहते होंगे. हमें लगता है इस दिशा में यह एक प्रयास है. ताकि मैं भी समाज के लिए कुछ कर सकूं.
सवाल : आज की युवा पीढ़ी कविता-रचना से काफी विमुख होते जा रहे हैं. खासकर झारखंड एवं संथाल परगना प्रमंडल में युवाओं में भटकाव की स्थिति है. ऐसे में आपका कविता संग्रह कितना बदलाव लाएगा.
जवाब : पाठक खत्म हो गए हैं, ऐसी बात नहीं है. पाठक दूर जरूर चले गए हैं. लेकिन पाठक को नजदीक लाना भी कवि का एक दृष्टिकोण है. अगर अच्छी चीजें या अच्छी बातें अच्छे ढंग से दी जाए तो इसका फायदा होगा. चुंकि मैं इस जमीन से जुड़ा हुआ हूं. निश्चित रूप से विश्वास है कि जो भी भूले बिसरे भटके नवयुवक हैं, उसे नजदीक लाएंगे. बेरोजगारी की समस्या महामारी की तरह है. हिंदी पट्टी में जी तोड़ युवा मेहनत करते हैं. लेकिन, उस हिसाब से वैकेंसी आती नहीं है. कविता, कहानी, लेखन विधा द्वारा भी युवक समाज में अपनी प्रतिष्ठा पा सकते हैं. यह संदेश भी हमारा है.
सवाल : आप की प्रारंभिक शिक्षा दीक्षा कहां से शुरू हुई थी.
जवाब : सारठ प्रखंड के (अजय नदी के बाद एवं पहले नदी के पहले) एक छोटा सा गांव बभनगामा स्थित राम चरण सिंह मध्य विद्यालय से पढ़ाई शुरू की थी. मेरे पिता पूजनीय—–वही पदस्थापित भी थे. रायबहादुर जगदीश प्रसाद सिंह इंटर स्तरीय विद्यालय बभनगामा से मैट्रिक की परीक्षा वर्ष 1990 में पास किया था. उसके बाद भैया (जो प्रशासनिक सेवा में हैं) उनके सानिध्य में मैं पटना विश्वविद्यालय पहुंच गया. करीब 13-14 वर्षों तक अध्ययन एवं बाद के 2 वर्षों तक अध्यापन का भी काम किया. मैं जब पीएचडी शोध प्रबंध का कार्य कर रहा था. उस वक्त पटना कॉलेज पटना में इंटर एवं स्नातक स्तर पर अध्यापन का कार्य किया. जिसमें विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा प्रमाण पत्र भी प्रदान किया गया है.
सवाल : टीचिंग प्रोफेशन में आने की पीछे का उद्देश्य क्या है.
जवाब : सच कहा जाए तो मैं टीचिंग प्रोफेशन में आना नहीं चाहता था. मेरे पिताजी एक शिक्षक थे. उन्हें मैंने देखा था. समाज में रुतबा शान शौकत जो रुतबा होना चाहिए वो उस वक्त के शिक्षकों के पास नहीं था. उस वक्त के शिक्षकों के पास आदर्श बहुत ज्यादा था. यथार्थ का जो ताकत चाहिए था, मुझे नहीं लगा कि वो वहां पर है. इसलिए मैं प्रशासनिक सेवा के क्षेत्र में जाने का मन बनाया था. लेकिन मेरे भैया कहते थे कि तुम कुछ बनोगे कि नहीं बनोगे. लेकिन तुम शिक्षक जरूर बनोगे. उन्हें पूर्ण भरोसा था. बचपन में मेरी मां भी कहा करती थी, मेरा बेटा अच्छा स्कॉलर बनेगा. हमको लगता है कि शायद मां की दुआ भी लग गई.
सवाल : आपकी अगली रचना क्या होगी.
जवाब : विजय वल्लरी पूरा का पूरा पद्य है. गद्य के रूप में किताब अगली रचना होगी. इसमें चुनिंदा निबंध मिलेगा. फिर गांधी पर आएंगे. क्योंकि गांधी हमारी बुनियाद है, ताकत है. गांधी में ही समाधान के सारे दीपक हैं. वास्तव में भारत गांधी के रास्ते पर चलने का प्रयास कर दे तो, ऐसी कोई समस्या नहीं है जिसका समाधान नहीं है. गांधी के नाम पर आडंबर व परंपरा का निर्माण अब तक हुआ है. उसके राह पर देश कभी चला ही नहीं है.
सवाल : सुधि पाठकों (ऑनलाइन एवं ऑफलाइन) के लिए क्या कहेंगे.
जवाब : ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर देश के कोने कोने में रह रहे पाठक मेरे विचारों को नियमित पढ रहे हैं. ऑनलाइन पाठकों ने मेरा बहुत हौसला अफजाई किया है. उन्हीं के कारण ही इस पुस्तक के प्रकाशन के लिए उत्प्रेरित हुआ हूं. पूर्ण विश्वास है कि सोशल मीडिया के मित्र इस पुस्तक को सराहयेंगे. ऑफलाइन के पाठकों से गुजारिश होगा कि वो इस धरती पुत्र की रचना को जरूर देखें. वो खुद कहेंगे कि शिक्षक अपने पेशे के साथ न्याय किया है.

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