Nikhil Sachan जी की नयी किताब पापामैन के बारे
By-कल्पना कृष्णा राव उबनारे
संघर्ष हर किसी की लाइफ में होते है.. ऐसे ही संघर्षो के बीच को तुफानो की तरह चीरते हुए एक छोटी सी जॉब कर के खुद को खुशनसीब मानती हूं.. कॉमिक्स.. हिंदी नॉवेल पढ़ना.. और इन सब से बोर होकर चंद लम्हे अपनी ड्राइंग बुक के साथ बिताना पसन्द करती हूँ..
तो बात करते है Nikhil Sachan जी की नयी किताब पापामैन के बारे में…
पापामैन एक मिडिल क्लास फैमिली की साधारण-सी कहानी में बड़ा संदेश छुपा है.. इस किताब पर फ़िल्म भी निर्माणाधीन है.. मुझे ये बुक इतनी पसन्द आयी है कि किंडल पर पढ़ने के बाद इसकी हार्ड कॉपी भी घर के एडरेस पर पापा के लिए आर्डर कर दी गयी है..
ये किताब हमारे माता पिता के उन अधूरे सपनों की कहानी बताती है जो हमारे सपने पूरे करने की जद्दोजहद में कहीं अधूरे बन्द संकुक में छिपे रह गए। साथ ही ये किताब आपको बताएगी के सपने पूरे करने की कोई निश्चित उम्र नही होई उम्र नही होती… ये किताब आपको कई मौकों पर हंसाएगी तो कई जगह पर पढ़ते हुए आपकी आंखों को नम कर जाएगी..
मुझे लगता है कि हमारा समाज चाहे जितना आगे भी बढ़ जाये लेकिन किसी बेटी को उसके पिता के साथ बैठ कर पीने की आजादी कभी नही मिल सकती.. लेकिन निखिल जी ने अपनी कहानी में ये सीन क्रिएट कर के उन समाज पर तमाचा मारा है जो आज भी बेटियों को घर की चार दिवारी में बैठाये रखते है.. निखिल जी ने साबित कर किया है कि बेटियां सिर्फ गोल रोटियां बनाने के लिए ही नही बल्कि इस गोल सी दुनिया पर राज करने के लिए बनी होती है..
ये कहानी छुटकी और उसके पापामैन चंद्रप्रकाश गुप्ता की है, जो कानपुर सेन्ट्रल रेलवे स्टेशन पर टिकट काटकर सबको उनके डेस्टिनेशन तक पहुचाते हैं… उनकी पत्नी सुलेखा, जो घर पर हाउस वाइफ है.. मिट्ठु उनकी बड़ी बेटी.. जो पेशे से डॉक्टर है और उस्की शादी की फुल स्टोरी है.. छुटकी IIT कानपुर में पढ़ती है, इनोवेटर है और आगे की पढ़ाई के लिए MIT, USA जाना चाहती है…
इस किताब के पापामेन यानी कि चंद्रप्रकाश गुप्ता जी का एक सपना होता है सिंगर बनने का.. लेकिन वह घर की जिम्मेदारियों और बेटियों के सपनो को पूरा करने के लिए अपने सपनो को अपनी डायरी में कैद कर के रख लेते है.. छुटकी बचपन से ही कई तरह के सपने देखती थी… उसे कभी एस्ट्रोनॉट बनना होता था, तो कभी मिस इंडिया तो कभी इंदिरा गाँधी.. छुटकी के सपने पूरा करते हुए चन्द्रप्रकाश ने छुटकी को ये कभी नहीं बताया कि एक सपना उन्होंने ख़ुद भी देखा था- बंबई जाकर सिंगर बनने का सपना… जो छुटकी के सपनों को पूरा करने की ज़िद में वो उस सपने को बन्द डायरी में कैद करके रख है..
गुप्ता जी स्टेशन पर आने जाने वाले हर व्यक्ति को उनके डेस्टिनेशन तक पहुँचने के लिए टिकट काट कर देते है और बम्बई जाने वालों को का टिकट काटते हुए खुशी से झूम कर पूछ बैठते-क्या..! आप बम्बई जा रहे है..क्यो जा रहे.. लोगो का सटीक जवाब न पाकर अपने काम मे मशगूल हो जाते..
अपनी सिंगर बनने के सपने से उन्हें इतना प्यार होता है कि अपने सपनो का ऑडिटोरियम बना कर वही पर अपनी सिंगिंग की प्रैक्टिस किया करते है.. अपनी बड़ी बेटी मिट्ठू की शादी करने के बाद एक बैंड पार्टी में सिंगिंग करने लगते है लेकिन मोहल्ले वालों के ताने बानो और सारे रिश्तेदारों के बीच उनके परिवार वालो को लगता है कि इससे उनकी इमेज खराब हो रही है तो छुटकी और अपने परिवार वालो की खातिर वो एक बार फिर अपने सपनो से समझौता कर लेते है.. और आखिर अपनी बेटी छुटकी के MIT जाने के सपनो को अपना बना लेते है.. एक समय बाद गुप्ता जी की दोनो बेटियों को पिंटू की वजह से एहसास होता है कि उनके सपनों में उड़ान भरने के लिए उन्होंने अपने सपनो कैद कर रखा है.. फिर दोनो बेटियों की जिद में आकर गुप्ता जी सिंगर बनने बम्बई पहुच चुके होते है..
किताब में कानपुर की भौकाली भी है.. बालकनी से पूरे मोहल्ले की कहानी रचने वाली मिश्र जी है..जो कि हर मोहल्ले या गलियों में देखने को मिल जाते है.. पिंटू और छुटकी की प्यारी सी लवस्टोरी भी है… पिंटू जो ITI में पढता है लेकिन IIT में पढने वाली छुटकी से प्यार कर बैठा है.. वो छुटकी की छूई हुई चीजो को बड़े ही सम्भाल कर रखता है.. उसका दोस्त अन्नू अवस्थी उसे कानपुर का रणवीर सिंह बताता है और अपने पिंटू भैया की लव स्टोरी को सफ़ल मुकाम तक पहुँचाना चाहता है..
इन सब के बीच मुझे ये किताब इसीलिए भी अच्छी लगी क्योकि इसमे बाप बेटियों की आपसी समझ भी है जिसमे ये बाप इन बेटियों के बाप नही दोस्त है.. जो साथ मे बैठ कर ड्रिंक भी करते है.. सुलेखा, गुप्ता जी की पत्नी इनके ड्रिंक करते हुए चखने की व्यवस्था करती है.. बाप बेटी के रिश्तों को बहुत ही खूबसूरत तरीको से बयां किया है.. इस तरह से इस किताब का नाम भी सार्थक हो जाता है.. ऑल ओवर कहा जा सकता है कि इस पर बनी फिल्म भी सुपरहिट ही होगी..
किताब की कुछ लाइन्स है जो मुझे बेहद पसंद आई–
जो लोग बुढ़ापे तक अपनी माँ और अपने पिता को प्यार करते हुए देखते है उनका इस जिंदगी पर भरोसा बहुत मजबुत होता है और वे दुनिया के सबसे भाग्यशाली लोग होते है..वे लोग इस दुनिया में प्यार की रही-सही कसर को भी पूरा करते रहते है और इसे और भी सुंदर दुनिया बनाते है..
अक्सर ऐसा होता है कि हमे दुख तब ज्यादा भारी लगने लगता है जब कोई हमे प्यार से पुचकार देता है.. तब अचानक से बाँधे हुए आँसू रोके नही जाते। ऐसा निकल पड़ते है जैसे किसी ने पुचकार कर वह बाँध खोल दिया हो और हम बस रो पड़े हो..
एक लकीर को बड़ी करने के लिए उसके बगल में छोटी लकीर बनाना जरूरी नही है। हम अपनी खुद की लकीर बड़ी बना सकते है..
प्यार का मतलब ठहराव है.. प्यार संडे का आलस है मंडे की भागदौड़ नही.. प्यार पेड़ की छाया है.. धूप की चिलचिलाहट नही..
आई होप ये किताब बेस्ट सेलर के रूप में जानी जाएगी.
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