18 April 2024

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कहो खुल के

होलिका दहन की कहानी और मेरे विचार 

होलिका दहन की कहानी और मेरे विचार 

by – रूपेश कुमार 

होली के रंग हमें यह पूरी दुनिया की याद दिलाती  है , जो रंगीन है. प्रकृति की तरह ही हमारी भावनाएं और उनसे जुड़े अलग-अलग रंग हैं- क्रोध का संबंध लाल से है, हरे रंग का जलन, जीवंतता से, पीले रंग का खुशी से, गुलाबी रंग का प्यार से, नीले रंग का विशालता से, सफेद का शांति से, भगवा का त्याग से और बैंगनी का ज्ञान से है. हर व्यक्ति रंगों का फव्वारा है, जो बदलता रहता है.

आज हम बात करेंगे होलिका दहन की  उनसे जुड़ी कुछ मान्यताओं की ,पुराणों में होली से जुड़ी एक कहानी है, जो बहुत ही रोचक है.होलिका दहन के संदर्भ में अनेक कथाएं प्रचलित है उनमें से एक कामदेव के भस्म होने की कथा है जो इस प्रकार से है
पार्वती हिमनरेश हिमावन तथा मैनावती की पुत्री हैं,मां पार्वती भगवान शिव से प्रेम करने लगी और उनसे विवाह करना चाहती थी. परंतु भगवान शिव घोर तपस्या में लीन थे. जिसके कारण मां पार्वती अपने प्रेम को भगवान शिव के आगे प्रस्तुत नहीं कर पा रही थी.

उधर राक्षस तारकासुर ने आतंक मचा रखा था और तारकासुर को मारने लिए देवताओं ने कामदेव से कहा, कि वह शिव और मां पार्वती के बीच प्रेम संबंध स्थापित करें. क्योंकि तारकासुर को वरदान है कि वह शिव और पार्वती के पुत्र द्वारा ही मारा जा सकता है. देवताओं की प्रार्थना पर कामदेव और देवी रति कैलाश पर्वत पर भगवान शिव का ध्यान भंग करने के लिए पहुंचे और कामदेव अपने धनुष जो फूलों से बना हुआ है इस धनुष की कमान स्वर विहीन होती है, मतलब कामदेव जब कमान से तीर छोड़ते हैं, तो उसकी आवाज नहीं होती इसका मतलब यह कि काम में शालीनता जरूरी है. तीर कामदेव का सबसे महत्वपूर्ण शस्त्र है. यह जिस किसी को बेधता है उसके पहले न तो आवाज करता है और न ही शिकार को संभलने का मौका देता है. कामदेव ने धनुष पर बाण चढ़ायाऔर छोड़ दिया.कामदेव का बाण लगने से भगवान शिव का ध्यान भंग हो गया और शिव क्रोधित हो गए और उन्होंने अपना तीसरा नेत्र खोल दिया और कामदेव को भस्म कर दिया.

इस तरह रति ने अपना प्रेम और पति खो दिया. विरह से व्याकुल रति विलाप करने लगी कामदेव की मृत्यु से रति को क्रोधित हो गईऔर रति ने पार्वती जी को श्राप दे दिया की पार्वती के पेट से कोई भी पुत्र जन्म नहीं लेगा.यह सब सुनकर मां पार्वती बेहद दुखी हुई. भगवान शिव ने पार्वती जी को समझा कर कहा कि वह दुखी ना हो और शिवजी ने पार्वती जी से विवाह कर लिया. जब देवताओं ने इस श्राप के बारे मे तथा कामदेव की मौत के बारे मे सुना तो वह बड़े व्याकुल हो गये. तो देवताओं ने छल से तारकासुर को वरदान दिलाया कि तारकासुर का वध केवल शिव के पेट से जनमा पुत्र ही कर सकता है.

देवताओं ने भगवान शिव से कामदेव को क्षमा कर उन्हें पुनर्जीवित करने की याचना की. कामदेव की पतिव्रता पत्नी रति की विनती पर भोलेनाथ ने कामदेव को फिर से जीवित कर दिया तथा शिव पुत्र कार्तीकेय ने तारकासुर का वध किया. जिस दिन कामदेव को भगवान शिव ने भस्म किया था उस दिन होलिका जलाई जाती है और कामदेव के जीवित होने की खुशी में रंगों का त्योहार यानी बड़ी होली मनाई जाती है. जिसे घुलेडी भी कहा जाता है.
ऐसा माना जाता है कि चंदन की लकड़ी को होलिका दहन में जलाने से कामदेव की जलन कामदेव को पीड़ा से मुक्ति मिलती है और इस कथा को सुनने से दांपत्य जीवन में प्रेम बढ़ता है और पवित्र प्रेम की शुरुआत होती है.

होलिका दहन की दूसरी पौराणिक कथा हिरण्यकश्यप की है 

एक असुर राजा हिरण्यकश्यप चाहता था कि हर कोई उसकी पूजा करे. लेकिन उसका पुत्र प्रह्लाद राजा के शत्रु भगवान विष्णु  का भक्त था और उससे छुटकारा पाने के लिए क्रोधित राजा चाहता था कि उसकी बहन होलिका यह काम करे. आग का सामना करने के लिए तैयार, होलिका एक जलती हुई चिता पर प्रह्लाद को अपनी गोद में लिये बैठी. लेकिन प्रह्लाद के बजाय होलिका आग में जल गयी और प्रह्लाद बिना कोई नुकसान आग से बाहर आ गया.

हिरण्यकश्यप प्रतीक है उसका , जो स्थूल है और प्रह्लाद मासूमियत, विश्वास और आनंद का प्रतीक है. भावना केवल प्रेम तक सीमित नहीं रह सकती. व्यक्तिगत जीवात्मा हमेशा के लिए भौतिकता से बाध्य नहीं रह सकती. अंततः नारायण जो एक का उच्च स्वर है, उसकी ओर बढ़ना स्वाभाविक है.

होलिका गत जीवन के बोझों का प्रतीक है, जिसने प्रह्लाद की मासूमियत को जलाने की कोशिश की. लेकिन नारायण भक्ति में गहराई से निहित प्रह्लाद की रक्षा करते हैं. आज कोविद 19 के जमाने में ये विचार बड़े मायने रखते हैं.

जो भक्ति में गहरा है, उसके लिए खुशी नये रंगों के साथ बहती है और जीवन एक उत्सव बन जाता है. अतीत को जलाते हुए आप एक नयी शुरुआत के लिए तैयार होते हैं. आपकी भावनाएं, आग की तरह आपको जलाती हैं, लेकिन जब वे रंगों के फव्वारे होती हैं, तो वे आपके जीवन में आकर्षण जोड़ती हैं. अज्ञानता में भावनाएं आपको परेशान करती हैं, ज्ञान में वही भावनाएं आपके जीवन में रंग जोड़ती हैं.

होली की तरह जीवन भी रंगीन होना चाहिए, उबाऊ नहीं. जब प्रत्येक रंग को स्पष्ट रूप से देखा जाता है, तो वह रंगीन होता है. सभी रंगों का मिश्रण काला रंग बनता है. इसी तरह, जीवन में भी हम सभी विभिन्न भूमिकाएं निभाते हैं.

प्रत्येक भूमिका और भावना को स्पष्ट रूप से परिभाषित करने की आवश्यकता है. भावनात्मक भ्रम से समस्याएं पैदा होती हैं. जब आप एक पिता हैं, तो आपको एक पिता की भूमिका निभानी होगी. आप कार्यालय में पिता नहीं हो सकते. जब आप अपने जीवन में भूमिकाओं को मिलाते हैं, तो आप गलतियां करने लगते हैं. जीवन में आप जो भी भूमिका निभाते हैं, अपने आप को पूरी तरह से उसके लिए दे दें.

जीवन में आपको जो भी आनंद का अनुभव होता है, वह आपके स्वयं की गहराई से होता है, जब आप उन सब को छोड़ देते हैं. जो आपने पकड़ रखा है और उस जगह में स्थिर या शांत हो जाते हैं, उसे ध्यान कहते हैं.

ध्यान कोई कृत्य नहीं है, यह कुछ न करने की कला है. ध्यान, बाकी गहरी नींद की तुलना में सबसे ज्यादा गहरा विश्राम देनेवाला है, क्योंकि ध्यान में आप सभी इच्छाओं को पार करते हैं. यह मस्तिष्क में शीतलता लाता है और शरीर-मन के भवन की पूरी मरम्मत करता है.

उत्सव आत्मा का स्वभाव है और मौन से निकला उत्सव सच्चा उत्सव है. यदि पवित्रता किसी उत्सव से जुड़ जाती है, तो वह परिपूर्ण हो जाती है, सिर्फ शरीर और मन ही नहीं, बल्कि आत्मा भी उत्सव मनाती है.

ये तो थी मेरी बात ,कल सोसाइटी में भी महिलाओं ने भी बड़े उल्लास के साथ छोटी होली मनायी ,कोविद के दिशा निर्देशों को देखते हुए उन्होंने घरों में ही धूम मचाई . 

साथ ही प्रूव्यू लबोनी सोसाइटी के AOA  के सदस्यों ने भी इस अवसर को यादगार बनाया ,सोसाइटी  में बहुत ही धूमधाम से होलिका दहन का कार्यक्रम मनाया गया इस कार्यक्रम में अध्यक्ष नवीन त्यागी महासचिव डॉ नवनीत कुमार पांडे कोषाध्यक्ष विजय गोविंद सक्सेना अनिल चौरसिया सुशील सिंह अंकुर जैन विवेक दीक्षित कपिल भार्गव, मनीष कुमार मनीष सिंह उज्जवल मिश्रा इत्यादि उपस्थित रहे. 

लेखक मार्केटिंग एण्ड सेल्स प्रोफेशनल,एजुकेशनिस्ट हैं और ‘स्ट्रेट फर्म लाइफ,जज़्बात और ब्लड ‘ नाम की किताब के ऑथर हैं

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