आज़ादी के मायने ?
by- अभिषेक सिंह
जिस आजादी के लिए हमारे देश के लाखों वीर-सपूतों ने कुर्बानियां दीं, जिस आजादी की कल्पना करके उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष किया, क्या हम उस आजादी का मतलब समझ पाये हैं?
आजाद भारत के नागरिक तो हैं, लेकिन एक आदर्श नागरिक का जो कर्तव्य और आचरण होना चाहिए, क्या वह हमारे अंदर है? एक आजाद देश में हमें जो अधिकार मिले हैं, क्या हम उसका सदुपयोग कर रहे हैं?
अगर कर रहे होते, तो क्या आज आजादी के 74 सालों बाद भी हमारे देश की यह हालत होती? आखिर हमें आजादी क्या इसीलिए मिली है कि मौका मिलते ही हम नियम-कानून को अपने हाथ में लेकर अपनी मनमर्जी करें? अपनी सुख-सुविधाओं की खातिर दूसरों के अधिकारों का हनन करें? मौका मिलते ही जाति और धर्म के नाम पर एक-दूसरे के खून के प्यासे होकर दंगे करें? क्या हमारे लिए यही है आजादी का मतलब? क्या आजादी का मतलब राह चलती महिलाओं-लड़कियों के साथ छेड़छाड़ करना, अपने पड़ोसियों को परेशान करना, करप्शन को बढ़ावा देना है। अगर हमारे लिए आजादी के यही मायने हैं, तो माफ करिए, इससे अच्छा तो हम आजाद ही न हुए होते। आज आजादी की 75वीं सालगिरह पर आइए हम जरा अपनी गिरेबां में झांकें और तय करें कि हमारे लिए आजादी का मतलब क्या है।
अगर आम जनता को परेशानी होती है, तो होती रहे।इससे हमें क्या मतलब? हम अपने निजी और धार्मिक प्रोग्राम को जब चाहें पब्लिक प्लेस पर करेंगे। रातभर तेज आवाज में लाउडस्पीकर डीजे बजाकर लोगों की नींद हराम करेंगे। पब्लिक की सुविधा के लिए बनाई गई चीजों का हम दुरुपयोग करेंगे। क्योंकि, हम आजाद हैं। जी हां, हम में से ज्यादातर लोग आजादी का मतलब यही समझते हैं। लोग इस तरह भी आजादी का दुरुपयोग कर रहे हैं। लेकिन, जरा सोचें कि क्या यही हैं हमारे लिए आजादी के मायने?
हम आजाद देश में रहते हैं, इसलिए जो हमारे धर्म और जाति का नहीं है, उसके साथ हम अन्याय करेंगे। उसके अधिकारों का हनन करेंगे। मौका मिलते ही हम दंगा-फसाद करेंगे। कुछ लोगों के लिए आजादी का यही मतलब है। अगर ऐसा नहीं होता, तो आज देश में जाति और धर्म के नाम पर भेदभाव के साथ ही दंगे-फसाद नहीं होते। देश में लोग अमन-चैन से रहते, लेकिन कुछ लोगों के लिए आजादी का मतलब यही है।
आजादी का मतलब यह नहीं है कि हमारे लिए संविधान में जो अधिकार मिले हैं, उसका हम दुरुपयोग करें।
क्या आजादी का मतलब गंदगी फैलाना है ?
शहर गाँव मुहल्लों से लेकर रोड और गलियों तक में फैली गंदगी के लिए हमलोग रोना रोते हैं। इसके लिए प्रशासन, गवर्मेन्ट को ब्लेम करते हैं, लेकिन क्या कभी हम सोचते हैं कि जगह-जगह कूड़ा-कचरा फैलाने की आजादी हमें किसने दी है, हम कूड़ा-कचरा को उसकी निर्धारित जगहों पर क्यों नहीं फेंकते हैं? मौका मिलते ही लोग जहां-तहां कूड़ा-कचरा फेंक देते हैं। जबकि, हमें यह पता होता है कि ऐसा करना गलत है। फिर भी हम अपनी आदतों से बाज नहीं आते, बल्कि इसे अपनी आजादी समझते हैं।
क्या वाकई यही है हमारे लिए आजादी का मतलब?
जब चाहेंगे शहर बंद का एलान कर देंगे। आम पब्लिक की जिंदगी को बंधक बना देंगे। अपनी मांगें मनवाने के लिए पब्लिक प्रॉपर्टी को नुकसान पहुंचाएंगे। क्योंकि, हम आजाद देश में रहते हैं। हम अपनी बात मनवाने के लिए किसी के भी अधिकारों पर अतिक्रमण कर देते हैं। हमारे लिए अपनी आजादी मायने रखती है, दूसरों की नहीं। ऐसे लोग जरा सोचें कि क्या यह वही आजादी है, जिसके लिए देश के वीर सपूतों ने अपना लहू बहाया है?
पद के दुरुपयोग की आजादी
हम आजाद देश में रहते हैं, इसलिए अगर हमें पावर और पोस्ट मिला है, तो हम उसका दुरुपयोग करेंगे। हम अपने अधिकारों को गलत इस्तेमाल करेंगे। कुछ लोगों के लिए आजादी का यही मतलब हो गया है। खासकर सरकारी पदों पर बैठे ज्यादातर अधिकारियों और कर्मचारियों के लिए, जो अपने अधिकारों का दुरुपयोग करते हुए करप्शन फैला रहे हैं। ऐसे लोगों के कारण देश आज भी गुलामी में है।
* लेखक के अगले आर्टिकल क्या हम सच मे आजाद हैं का इंतज़ार कीजिये ।
लेखक – अभिषेक सिंह युवा समाजसेवी और समाज के ज्वलंत मुद्दों पे अपने विचार खुलके रखने के लिए जाने जाते हैं।
आज़ादी के अनेक अर्थों में इसकी सार्थकता का अर्थ शायद देश की अधिकांश आबादी ने आज तक ग्रहण ही नहीं किया है। एक देश की राष्ट्रीयता की पहचान उस देश के अच्छे नागरिकों से भी होती है, लेकिन हमारे देश को राजनीतिक ठेकेदारों और उसकी बनाई हुई व्यवस्था ने जातियों, सम्प्रदायों, क्षेत्रों, भाषाओं, आदि की विविधतापूर्ण संस्कृति की सुंदरता को कुरूप बनाने का भी काफ़ीहद तक प्रयास किया है, जिसके कारण देश आज 74 सालों के बाद भी सामाजिक रूप से पिछड़ी सोच से उबर नहीं पा रहा। लोग दिखावे के लिये तो स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस पर बहुत अच्छी बातें करते हैं, खुद को देशभक्ति की भावना से भर लेते हैं, लेकिन असल जिंदगी में वो सब कहीं भी दिखाई नहीं देता। अपने स्वार्थ से लोग बाहर ही नहीं निकल पड़ते, लोगों को अपनी – अपनी रोटियाँ सेकनी हैं। देश उनके लिये बाद में आता है, देश की मर्यादा और उसकी गरिमा, देश का स्वाभिमान और गौरव, देश का महान ऐतिहासिक सन्दर्भ सब उनके लिये कोई अर्थ नहीं रखते, जो गन्दगी फ़ैलाते हैं, जो सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाते हैं, जो आंदोलन के नाम पर लोगों के लिये शहर और यातायात ठप्प कर देते हैं, जो तोड़- फोड़, हिंसा, आगज़नी, उपद्रव, उत्पात मचाते हैं, जो क़ानून को ताक पर रखकर चलते हुए अपनी शेखी बघारते हैं, जो जातियों और धर्मों के नाम पर दंगे- फ़साद करते और करवाते हैं।
ऐसी स्थितियों में यही कहा जा सकता है कि हमने उन स्वातन्त्र्य वीरों और भारत माता के वीर सपूतों के सपने तोड़े हैं। हम उनको सच्ची श्रद्धांजलि नहीं दे पाये हैं। दुनिया के अनेक छोटे- छोटे देश, अनेक ऐसे देश जिनकी आबादी भी हमसे सौ- सौ गुणी कम है, वैसे देश हमसे बहुत आगे निकल गये विकास और उन्नति के क्षेत्र में, लेकिन हम आज भी ग़रीबी, अशिक्षा, अनेक कुरीतियों से जूझ रहे हैं। जिनके लिये केवल सरकारें ही दोषी नहीं रही हैं, बल्कि लोग भी दोषी रहे हैं। कहा जा सकता है कि इक्कीसवीं सदी के अनुसार और बदलती वैश्विक प्रतिस्पर्धा में हमारे देश की सरकार और देश के नागरिकों को भी मानसिक रूप से अपने- आपको उन्नत और विकसित करना होगा।
-राजवंश केशरी, शिक्षक, कन्या मध्य विद्यालय, गिद्धौर ( जमुई)