By- विनीता मिश्रा, मैत्रेय स्कूल देवघर की प्रिंसिपल .
बेबाक अड्डा,
शिक्षा बच्चों की आंतरिक क्षमताओं, संभावनाओं एवं रुझानों को परखने की, उसके व्यक्तित्व को निखारने की व सर्वांगीण विकास की एक सतत प्रक्रिया है. छोटे बच्चों को कैसे पढ़ाएं, उनका होमवर्क पूरा कैसे कराएं. यह आज भी लोगों के लिए बड़ा सवाल बनकर खड़ा है. स्कूल से मिलने वाला होमवर्क को ठीक से पूरा कराना एवं घर पर बच्चों को पढ़ाना माता-पिता के लिए किसी टास्क से कम नहीं होता है. अगर बच्चों की पढ़ाई का सही तरीका जान लिया जाए तो यह जितना मुश्किल लगता है, उतना ही आसान भी हो जाएगा. बच्चों को पढ़ाई के नाम पर पिटाई करना काफी गलत है. घर पर पढ़ाई के भक्त बच्चों को भूखे नहीं रहे दे. वरना बच्चों में सुस्ती के साथ साथ उनका स्वभाव चिड़चिड़ा हो जाएगा. पढ़ाई के नाम पर बच्चों को कभी भी डराना धमकाना नहीं चाहिए. इससे उनकी मनोदशा पर प्रतिकूल असर पड़ता है. घर पर बच्चों के मन मर्जी के हिसाब से पढ़ाई का टाइम फिक्स करें, पढ़ाई के दौरान बच्चों की तारीफ करें, टीवी पर बच्चों के कार्यक्रम के दौरान उन पर पढ़ाई के लिए दबाव नहीं बनाये. बच्चे ज्यादा होमवर्क से घबरा जाते हैं, इसलिए कोशिश करें कि घर पर ब्रेक देखकर बच्चों की पढ़ाई कराएं.
उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति की पौराणिक शिक्षा प्रणाली काफी समृद्ध रही है. प्रचलित गुरु शिष्य प्रणाली में बच्चों को ना सिर्फ वेदों की शिक्षा दी जाती थी, अपितु कौशल आधारित विधा भी सिखलाई जाती थी. परिणाम स्वरूप बच्चे अपने शिक्षण अवधि को पूर्ण कर अपनी योग्यता अनुसार समाज एवं देश के लिए समर्पित रहते थे. ब्रिटिश काल में शिक्षा का ह्रास हुआ. जबरन शिक्षा को निम्न स्थान पर रखा गया. निहित स्वार्थ को पूर्ण करने के लिए अंग्रेजी भाषा को प्राथमिकता दी गई. रटनत विद्या हावी रही, और परिणाम स्वरूप मौलिकता से दूरी बन गई. हमारी आधुनिक शिक्षा प्रणाली मुख्यता ब्रिटिश प्रतिरूप पर आधारित है. यद्यपि शिक्षा को मौलिक अधिकारों से जोड़ते हुए जन जन तक पहुंचाने की सतत प्रयास जारी है. लेकिन ग्रामीण बच्चों तथा शहरी बच्चों के शिक्षण प्रणाली में असमानता की वजह से हमें आज भी वांछित सफलता प्राप्त नहीं हुई है.
वैश्विक महामारी के आरंभिक समय ‘किं कर्तव्य विमूढ़’ क्या कर्तव्य हो की स्थिति आ गई है. जहां चारों ओर सिर्फ निराशा ही निराशा हो, वहां शिक्षण कार्य में आशा की किरण जगाना एक चुनौती रही. लेकिन जैसा कहा जाता है कि आविष्कार ही आवश्यकता की जननी है. बच्चों, शिक्षण संस्थानों, शिक्षकों तथा अभिभावकों के संयुक्त प्रयास से ऑनलाइन शिक्षण तकनीक पर काम शुरू हुआ, और फलस्वरुप कहा जा सकता है कि शिक्षा को रोचक तरीके से विभिन्न गतिविधियों के साथ कराने की प्रथा आरंभ हुई. पढ़ाई के साथ-साथ आज बच्चे योग की शिक्षा, विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रम, प्रतियोगिताएं आदि वर्चुअल प्लेटफार्म पर कर रहे हैं. कोरोना काल का भविष्य तो निर्धारित नहीं है. लेकिन हमें यह पूर्ण विश्वास है कि हम जब भी बाहर आएंगे तो खुद को और समृद्ध और मजबूत पाएंगे. पुराने शिक्षण दास्तां को तोड़कर नई शिक्षा नीति ने कई अहम पहलू पर विशेष ध्यान दिया है. जिसमें प्राथमिक शिक्षा में मातृ भाषा को स्थान मिलना भी काफी अहम है. बच्चों के पूर्ण बौद्धिक विकास के लिए अहम है. यह पूर्ण विश्वास है कि नई शिक्षा नीति को अपनाते हुए नई ऊंचाइयों को प्राप्त करेंगे.
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नई शिक्षा नीति और बच्चे